मन एक सान पक्षी
मन रानभर नक्षी
मन पिसारा पिसारा
मन मोठाच पसारा
मन भीती मन प्रिती
मन भुणभूण किती
मन आठवे साठवे
पुन्हा जुनेच नव्याने
मन कैरीची गं फोड
नाही कसलीच तोड
मन साजण साजण
गाली चढते तोरण
मन माय मन तात
मन सखीचा गं हात
मन जखम जखम
मन घालते फुंकर
मन भास मन त्रास
लक्ख उजेडाची आस
मन चकव्याचे फूल
देई पुन्हा पुन्हा हूल
--श्यामली
10 comments:
kavita aawaDali!
Kavita Chaan Aahe, it was very nice poem, very smooth and simple arrangement.
dhanyawaad manaDalee :)
मस्तच
धन्यवाद हरेकृष्णाजी :)
मन आठवे साठवे
पुन्हा जुनेच नव्याने...
वा वा. बहूत खूब. अतिशय साधी, सोपी आणि सरळ रचना. सुंदर!! कीप इट अप
बाय द वे. गझल चे काय ?
ekadam bahiNabai style jhale he! good one.
धन्यवाद, संग्राम :)
aurangabad madhe kavitache mandal ase mhanal tar vishesh activities nahit. pan bashar nawaz wagaire mandali ahet, marathitil kahi kavi pan ahet, tyanchyashi bolta yeil.I can help u in that
Post a Comment