जिंदा होने का एहसास दिलाते है ज़ख्म
फिर जीने का कोइ बहाना बन जाते है ज़ख्म!
जी उठती हूं फिरसे जब कुरेदती हूं इन्हे
हर सुबह बनते है नये, और शाम पुराने से ज़ख्म!
चिंगारी सी जलन,तपती धूप सी अगन इनमे
ठहरे पानी से है फिर भी क्यू सुलगते है ज़ख्म!
संभाले है न जाने कितनी मुद्दतोंसे मैने
मिलो तो बताऊं के है तुमसे भी प्यारे अब ये ज़ख्म!
7 comments:
KYAA BAAT HAI YAAR.. !!!!!
sadhya Diti Naval ch LAMHA LAMHA wachtoy......ani tyatach tumchi hi kavita vachli.....2 weglya track waril manase sarkha vichar kartat pan weglya prakarat abhiwyakt hotat he prakarshane jaanawale....sundar! apratim
दर्दे मिन्नत कशे दवा न हुवा
मै ना अच्छा हुवा बुरा ना हुवा.
Excellent Syamalee :)
Looking forward to read more Hindi poems.
Sandeep
(www.atakmatak.blogspot.com
zakasa ho bai
surekh! phaar aavaDalI!
jamala.n tar 'har subaha bana'te' hain naye' asaa badal kar.
मीनू ,मंजु मन;पूर्वक धन्यवाद :)
मंजू बदल केलाय :)
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